दिल्ली में मनोज तिवारी Vs कन्हैया कुमार का मुकाबला क्यों है अहम, पांच पॉइंट में समझिए

कांग्रेस ने दिल्ली में अपने खाते की तीनों सीटों के लिए उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. पार्टी ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली से कन्हैया कुमार को उम्मीदवार बनाया है. वह बीजेपी के मनोज तिवारी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. पार्टी नेता राहुल गांधी ने खुद कन्हैया कुमार की पैरवी की.


आखिरकार लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस ने दिल्ली के सभी तीन उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर ही दी. इन तीन उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा हाई प्रोफाइल उम्मीदवार कन्हैया कुमार हैं. कन्हैया कुमार अब दो बार के सांसद और सिनेमा स्टार मनोज तिवारी को सीधी चुनौती देंगे. केवल दिल्ली ही नहीं बल्कि देशभर की नजरें इस हाई प्रोफाइल कांटेस्ट पर रहने वाली हैं. समझिए यह चैलेंज इस बार के लोकसभा चुनाव के सबसे बड़े मुकाबले में से एक क्यों होगा.

1) पूर्वांचली बनाम पूर्वांचली – नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में पूर्वांचल की आबादी काफी ज्यादा है. यह पूरे भारतवर्ष का सबसे सघन आबादी वाला इलाका है. इसकी वजह है यहां पर बनी अनधिकृत कॉलिनियां जहां पर अलग-अलग राज्यों से प्रवासी या माइग्रेंट जनसंख्या सबसे ज्यादा है. इसी इलाके में बुराड़ी, करावल नगर, सीमापुरी, गोकुलपुरी जैसे क्षेत्र आते हैं जहां सैकड़ों की तादाद में अनऑथराइज्ड कॉलोनियां हैं. इनमें न सिर्फ बिहार, बल्कि उत्तर प्रदेश और हरियाणा से आकर काम करने वाली बड़ी आबादी रहती है. ऐसे में उन सब का वोट किस तरफ जाएगा यह भी यहां का चुनावी समीकरण तय करेगा.

2) दिल्ली का सबसे ज्यादा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण वाला इलाका है नॉर्थ ईस्ट दिल्ली- नॉर्थ ईस्ट दिल्ली 2020 में हुए सांप्रदायिक दंगों की वजह से पूरी दुनिया में कुख्यात हो गया था. उन दंगों के बाद इस इलाके में धार्मिक ध्रुवीकरण बहुत ज्यादा देखने को मिला. इस लोकसभा क्षेत्र में सीलमपुर, मुस्तफाबाद, बाबरपुर और करावल नगर जैसे क्षेत्र आते हैं जहां मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा है. पूरे लोकसभा क्षेत्र में वोटरों के लिहाज से 21% वोटर मुस्लिम समुदाय से आते हैं. इसलिए संभावना यही है कि इस बार के चुनाव में भी धार्मिक ध्रुवीकरण का मुद्दा काफी जोर पकड़ सकता है.

3) दो स्टार की रोचक जंग- मनोज तिवारी जो कि नॉर्थ ईस्ट दिल्ली से बीजेपी के उम्मीदवार हैं वह इस इलाके से लगातार दो बार सांसद रह चुके हैं. उनकी इस इलाके में अच्छी-खासी पकड़ मानी जाती है. नेता के तौर पर वह लोकप्रिय हों न हों, लेकिन अभिनेता और गायक के तौर पर उनकी फैन फॉलोइंग का जवाब नहीं. जबकि कन्हैया कुमार की स्टार छवि अलग किस्म की है. बतौर जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्रसंघ प्रेसिडेंट वो रातोरात स्टार बन गए थे. उनके भाषणों के जरिए उनकी लोकप्रियता एक अलग स्तर तक पहुंच गई. अब वो NSUI के AICC इंचार्ज हैं और खास तौर पर युवाओं से जुड़े मुद्दे लगातार उठाते रहे हैं.

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4) मोदी का सिपाही बनाम राहुल का राइट हैंड- कन्हैया कुमार राहुल गांधी की दोनों भारत जोड़ो यात्रा में काफी सक्रिय रहे. लगातार उन यात्राओं की योजना बनाना और युवाओं को साथ जोड़ने में उनकी अहम भूमिका रही है. कभी कम्युनिस्ट रहे कन्हैया कुमार अब राहुल की सेना के सबसे सक्रिय सिपाहसालारों में से एक हैं. वहीं मनोज तिवारी की अहमियत इस बात से पता चलती है कि दिल्ली की 7 सीटों में से सिर्फ एक मौजूदा सांसद को टिकट दिया गया और वह तिवारी हैं. मनोज तिवारी खुद को नरेंद्र मोदी की सेना का एक सिपाही मानते हैं और सिर्फ दिल्ली की सियासत में ही नहीं बल्कि अलग-अलग चुनाव में बतौर स्टार प्रचारक उनकी भूमिका काफी अहम रही है.

5) नॉर्थ ईस्ट की जंग से निकलेगा दिल्ली का भविष्य- एक बात तो तय है कि नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के नतीजे चाहे जो भी आएं यह आने वाले दिनों में देश की राजधानी की राजनीति की दिशा जरूर तय करेगा. इन चुनाव में चाहे मनोज तिवारी जीतें या फिर कन्हैया कुमार, दोनों के सामने दिल्ली की राजनीति में अपनी पार्टी को नेतृत्व देने की काफी क्षमता मौजूद है. मौजूदा समय में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल कई आरोपों में घिरे हैं ऐसे में यहां से जो भी जीतेगा उसे उनकी पार्टी दिल्ली के भविष्य के तौर पर प्रोजेक्ट कर सकती है.

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