ग्राउंड जीरो: वोटरजी की लीला अपरंपार… मोदी-योगी की हवा और हिंदुत्व के मुद्दे से हेमा मालिनी को हैट्रिक की आस
मथुरा सीट पर मोदी-योगी की हवा और हिंदुत्व के मुद्दे से हेमा मालिनी को हैट्रिक की आस है। पूर्व प्रशासनिक अधिकारी सुरेश सिंह बसपा के नए महावत हैं, जाटों का ध्रुवीकरण रोकने के लिए दांव चला है। सपा से हाथ मिलाने वाली कांग्रेस की नई उम्मीद मुकेश धनगर हैं।
कृष्ण की जन्म स्थली मथुरा में 15 प्रत्याशी चुनावी रण कौशल दिखा रहे हैं। इस सीट पर भाजपा से हेमामालिनी, बसपा से सुरेश सिंह और कांग्रेस से मुकेश धनगर मैदान में हैं। रालोद के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही भाजपा को मोदी-योगी की हवा और हिंदुत्व के मुद्दे से हैट्रिक लगने
भारतीय राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी सुरेश सिंह बसपा के हाथी के नए महावत हैं, तो इंडिया की मोर्चेबंदी से सपा के साथ हाथ मिलाने वाली कांग्रेस की नई उम्मीद जातीय संघर्ष से नेता बने मुकेश धनगर हैं। चुनाव में अलग-अलग जातियों की रस्साकशी के लिए मशहूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस संसदीय क्षेत्र की पांचों विधानसभा सीटें-मथुरा, गोवर्धन, बलदेव, मांट और छाता पर भगवा परचम फहरा रहा है।
मथुरा के सियासी मिजाज की बात करें तो यहां से अटल बिहारी वाजपेयी, नटवर सिंह जैसे दिग्गज भी हार का स्वाद चख चुके हैं। यहां से जाट समुदाय के ही ज्यादातर सांसद बने हैं। 2014 और 2019 के चुनाव में जीत हासिल कर हेमामालिनी लगातार दो बार सांसद बनीं।
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी केवल एक बार 2009 में भाजपा के सहयोग से राष्ट्रीय लोकदल से लोकसभा पहुंचे। 2014 में हेमामालिनी से हारे जयंत ने इस बार उन्हीं को जिताने के लिए पसीना बहाया।
इस सीट पर सबसे ज्यादा आबादी जाटों की है। हेमामालिनी जाटों की बहू हैं, तो बसपा ने भी जाट सुरेश सिंह को चुनाव में उतारकर जातीय समीकरण साधने के लिए बिसात बिछाई है। जाटों के ध्रुवीकरण के लिए ही भाजपा-रालोद का गठबंधन बना है, वहीं बसपा इसी जातिगत दांव से भाजपा को पटकनी देना चाह रही है।
बसपा पिछले कुछ चुनावों में कांग्रेस से अच्छे वोट हासिल कर चुकी है, मगर लोकसभा चुनाव में अपना खाता यहां कभी नहीं खोल पाई। वहीं सपा की इस सीट पर कभी संतोषजनक स्थिति नहीं रही। ऐसे में मायावती दलितों-ब्राह्मणों की सोशल इंजीनियरिंग से भाजपा को ब्रजभूमि में धूल चटाना चाह रही हैं। बसपा को जाटव समुदाय से ही नहीं, ब्राह्मणों से भी खास उम्मीद ह
कांग्रेस पहले जाट समुदाय के अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज विजयेंद्र सिंह को टिकट दे रही थी। लेकिन, ऐन मौके पर वह कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा के हो लिए। कांग्रेस ने भी नया जातीय पैंतरा चलते हुए धनगर (बघेल) समुदाय के मुकेश धनगर को अपनी नाव का नया खेवनहार बना दिया।
मुकेश धनगर इस समुदाय को एससी में शामिल करने का झंडा उठाकर ही आगे बढ़े हैं। भाजपा-रालोद गठजोड़ से नाखुश जाटों और बसपा को नापसंद करने वालों पर कांग्रेस की नजर टिकी है और मुस्लिम मतदाताओं को भी वह अपना मान रही है। धनगर ने धरतीपुत्र के मुद्दे को भी खूब हवा दी।
मुद्दों पर मुखर मतदाता
मथुरा के कृष्णापुरी चौराहे पर मिले ऑटो चालक शकील खान चुनाव को लेकर सवाल करते ही कहते हैं, यहां 90 फीसदी मुसलमानों के ठाकुर जी (भगवान कृष्ण) की वजह से पेट पल रहे हैं। ठाकुर जी की नगरी के विकास की उम्मीद मोदी-योगी से है। आगे द्वारिकाधीश मंदिर की ओर मिले गुल्लू चौबे कहते हैं, हेमामालिनी लोगों से नहीं मिलतीं, केवल मोदी और योगी के नाम पर ही चुनाव लड़ रही हैं।
वृंदावन में मिले अजय कहते हैं, हेमामालिनी की नैया तो मोदी-योगी ही पार लगा सकते हैं। गोवर्धन में मिले कन्हैया एक कदम और आगे बढ़ते हुए कहते हैं- यहां तो मोदी और योगी ही चुनाव लड़ रहे हैं। रालोद से गठबंधन कर जाटों को इकट्ठा कर ही दिया है। मथुरा और गोवर्धन के बीच स्थित खामनी गांव में मिले बुजुर्ग बने सिंह और प्रकाशी कहते हैं, जो मर्जी जीते, कोई कुछ नहीं देने वाला। बाबा मुरारी दास कहते हैं, यमुना मैया खारी और मलिन हो गई हैं। इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा।
गोकुल में मिले मदन कुमार निषाद कहते हैं कि जब बाढ़ आई तो गांव खाली कराने में निषादों से काम लिया गया। पर, उनको पैसा नहीं दिया गया। गोकुल में यमुना जी की हालत खराब है।
मांट क्षेत्र के निवासी जितेंद्र कहते हैं कि हेमामालिनी से लोग इसलिए नाराज हैं कि चुनाव जीतने के बाद वह मुंबई चली जाती हैं। फिर अगला चुनाव आने पर ही लौटती हैं।
प्रमुख समस्याएं
यमुना की सफाई
धार्मिक पर्यटन विकास
छुट्टा पशुओं की समस्या
सड़कों की हालत
मथुरा में रेलवे का वांछित विस्तार नहीं
नए उद्योग नहीं