सदन में दिया गया अपमानजनक बयान अपराध नहीं’, सुप्रीम कोर्ट में उठा रमेश बिधूड़ी का मामला
सदन में दिया गया अपमानजनक बयान अपराध नहीं’, सुप्रीम कोर्ट में उठा रमेश बिधूड़ी का मामला
सात जजों की पीठ के समक्ष दो दिन की संक्षिप्त सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है. यह सुनवाई 1998 के पीवी नरसिम्हा राव के फैसले का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए बुलाई गई थी. इसी के तहत संसद में अपने वोट के बदले रिश्वत लेने वाले झामुमो सांसदों और विधायकों को राहत मिल गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को संसद या विधानसभाओं के भीतर राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ मानहानिकारक बयानों को आपराधिक साजिश के हिस्से के रूप में वर्गीकृत करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि संसद या राज्य विधानसभाओं के अंदर दिए गए अपमानजनक बयान आपराधिक कृत्य नहीं हैं.
झामुमो विधायक सीता सोरेन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने दलील दी कि सीता सोरेन को संविधान के अनुच्छेद 194(2) के तहत छूट प्राप्त है. यह अनुच्छेद सदन में किसी भी बात या दिए गए वोट को कानूनी कार्रवाई से बचाता है. रामचंद्रन ने चिंता व्यक्त की कि सदन के भीतर वोट या भाषण से संबंधित कार्यों के लिए इम्यूनिटी प्रदान करने में विफल रहने से विधायकों को आक्रामक भाषणों के जरिए अपने सहयोगियों को बदनाम करने की साजिश रचने के संभावित आरोपों का सामना करना पड़ेगा.
दरअसल, सीता सोरेन पर 2012 के राज्यसभा चुनाव के दौरान एक खास उम्मीदवार को वोट देने के लिए रिश्वत लेने का आरोप है. उन्होंने अभियोजन से छूट देने वाले संवैधानिक प्रावधान के तहत सुरक्षा की मांग की.
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