Rajasthan election: इन पांच जातियों से ही सधेगा जयपुर की गद्दी का ताज, अगले 12 घंटे बेहद अहम
राजस्थान में विधानसभा चुनाव में हमेशा से पांच जातियों का झुकाव जिसकी और ज्यादा रहा है, राजस्थान में सत्ता हमेशा उसके हिस्से में आई है। सियासी जानकारों का कहना है कि इसी समीकरण को देखते हुए सभी दलों ने इन पांचों जातियों पर अपना मजबूत फोकस कर सत्ता हासिल करने की लड़ाई लड़ी है…
राजस्थान में शुक्रवार को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होंगे। कांग्रेस इस बार जहां रिवाज बदलने के लिए और भाजपा ने रिवाज कायम रखने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है। लेकिन राजस्थान में सियासत के जानकारों का मानना है कि चुनाव में रिवाज बदलेगा या नहीं बदलेगा, यह यहां की पांच जातियां मिलकर ही तय करेंगी कि इस बार जयपुर की गद्दी किसको दी जाए। राजनीति में जातीयता के इस गणित पर भाजपा और कांग्रेस ने अपने सियासी मोहरे चुनाव के आगाज के साथ ही बिठा दिए थे। अब उसकी परीक्षा शुक्रवार को होनी है, जिसके परिणाम तीन दिसंबर को आएंगे। फिलहाल भाजपा और कांग्रेस में राजस्थान में सत्ता पाने के लिए अगले 12 घंटे इन पांच जातियों को साधने के साथ-साथ सत्ता पाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं।
राजस्थान में विधानसभा चुनाव में हमेशा से पांच जातियों का झुकाव जिसकी और ज्यादा रहा है राजस्थान में सत्ता हमेशा उसके हिस्से में आई है। सियासी जानकारों का कहना है कि इसी समीकरण को देखते हुए सभी दलों ने इन पांचों जातियों पर अपना मजबूत फोकस कर सत्ता हासिल करने की लड़ाई लड़ी है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक तरुण मीणा कहते हैं कि राजस्थान में जाट, गुर्जर, राजपूत, आदिवासी और दलित यह वह प्रमुख पांच जातियां है, जिन्हें साध कर सत्ता की सीढ़ी चढ़ी जाती रही है। वह कहते हैं कि इस बार भी इन सभी जातियों को साधते हुए ही भाजपा, कांग्रेस समेत अन्य क्षेत्रीय दलों ने इसी आधार पर अपने प्रत्याशियों का चयन कर सियासी मैदान में उतारा भी है।
आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान में तकरीबन 89 फीसदी हिंदू है। जबकि 11 फीसदी अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखने वाले लोग आते हैं। वरिष्ठ पत्रकार तरुण मीना कहते हैं कि राजस्थान में 9 फ़ीसदी मुस्लिम हैं। जबकि गुर्जर और राजपूतों की हिस्सेदारी भी नौ-नौ फीसदी के बराबर है। राजस्थान में 12 फ़ीसदी जाट और 13 फ़ीसदी आदिवासी समुदाय के लोग हैं। जबकि 18 फीसदी दलित राजस्थान की सियासत को अपने झुकाव के चलते सरकार बनाने और बिगड़ने की
हैसियत रखते हैं। वह बताते हैं कि राजस्थान में ब्राह्मण और मीणा समुदाय भी तकरीबन सात-सात फ़ीसदी की बराबर हिस्सेदारी रखते हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि जातीयता के इस समीकरण में भाजपा और कांग्रेस समेत अन्य सभी दलों ने अपने-अपने प्रत्याशियों का चयन कर राजस्थान के सियासी मैदान में जयपुर की गद्दी पाने के लिए सियासी बिसात बिछाई है।
इस चुनाव में जातिगत समीकरणों को साधते हुए भाजपा और कांग्रेस ने जाट, आदिवासी, राजपूत, गुर्जर और दलितों को मजबूती से सियासी मैदान में उतारा है। आंकड़ों के मुताबिक कांग्रेस पार्टी ने जहां पूरे राजस्थान में 36 प्रत्याशी जाट समुदाय के उतारे हैं, वहीं भाजपा ने 33 प्रत्याशी जाट समुदाय के चुनाव लड़ने के लिए उतारे हैं। इसी तरह कांग्रेस ने 17 राजपूतों को चुनाव के मैदान में लड़ने भेजा है, तो भाजपा ने 25 राजपूत प्रत्याशी सियासत के मैदान में उतारे हैं। भाजपा ने गुर्जर समुदाय से 10 प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने के लिए भरोसा जताया है। तो कांग्रेस ने 11 गुर्जर प्रत्याशियों को सियासी समर में उतारा है।
राजस्थान में आदिवासी और दलित हमेशा से सियासत की दशा और दिशा तय करते आए हैं। इसीलिए कांग्रेस और भाजपा ने इस समुदाय पर भी मजबूती से अपने प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने के लिए उतारा है। आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान में कांग्रेस ने 33 आदिवासी प्रत्याशियों को टिकट दिया है तो भाजपा ने 30 आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वालों को टिकट देकर चुनाव लड़ने भेजा है। जबकि दलित प्रत्याशियों में कांग्रेस ने 34 पर भरोसा जताकर उनको मैदान में उतारा है, तो भाजपा ने भी इतने ही प्रत्याशियों पर भरोसा जताकर उन्हें सियासी मैदान में जयपुर की गद्दी
पाने के लिए चुनाव लड़ाया है।
सियासी जानकार हंसराज जसवाल का कहना है कि राजस्थान में जातिगत समीकरणों के आधार पर तो सभी राजनीतिक दलों ने बहुत मजबूत फील्डिंग सजाई है। इसलिए सभी सियासी दल अपनी जीत का मजबूती से दावा भी कर रहे हैं। लेकिन उनका कहना है कि राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस ने जिस अनुपात में जाट, राजपूत, आदिवासी गुर्जर और दलितों को टिकट दिया है, वही कड़ा मुकाबला भी सियासी मैदान में करवा रहे हैं। उनका कहना है कि राजस्थान में जाट, आदिवासी, राजपूत, गुर्जर और दलित समुदाय 131 प्रत्याशियों को कांग्रेस ने टिकट देकर चुनाव लड़ाया है। तो वहीं भाजपा ने भी इन्हीं जाट, आदिवासी, राजपूत, गुर्जर और दलित समुदाय के 132 प्रत्याशियों पर भरोसा जताकर सियासी मैदान में उतारा है। हंसराज कहते हैं कि राजस्थान में सियासी समीकरण हमेशा से इन पांच जातियों के आधार पर तय होते आए हैं। चुनाव में दोनों प्रमुख पार्टियों ने बराबर की हिस्सेदारी के साथ टिकट दिए हैं। इसलिए लड़ाई कांटे की ही है।